अक्टूबर तालिक 2025
October Tableमीराबाई
(साखी)॥ ॥(साखी)-॥
दारिदु देषि सभको हँसै ऐसी दसा हमारी असट दसा सिधि करतलै सभ कृपा तुम्हारी तू जानत मैं किछु नहीं भव षंडन राम सगल जीअ सरनागती प्रभ पूरन काम जो तेरी सरनागता तिन नाही भारु ऊँच नीच तुमते तरे आलजु संसारु कहि रविदास अकथ कथा बहु काइ करीजै जैसा तू तैसा तुही किया उपमा दीजै
नरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भगति करूँ मैं तेरी नरहरि चंचल है मति मेरी कैसे भगति करूँ मैं तेरी तूँ मोहिं देखै हौं तोहि देखूँ प्रीति परस्पर होई तूँ मोहिं देखै तोहि न देखूँ यह मति सब बुधि खोई सब घट अंतर रमसि निरंतर मैं देखन नहिं जाना गुन सब तोर मोर सब औगुन कृत उपकार न माना मैं तैं तोरि मोरि असमझि सों कैसे करि निस्तारा कह 'रैदास' कृस्न करुनामय जै जै जगत अधारा
पावन जस माधो तेरा तुम दारुन अध मोचन मेरा पावन जस माधो तेरा तुम दारुन अध मोचन मेरा कीरति तेरी पाप बिनासे लोक वेत यों गावे जौ हम पाप करत नहिं भूधर तौ तूँ कहा नसावै जब लग अंग पंक नहिं परसै तौ जल कहा पखारै मन मलीन विषया रस लंपट तौ हरि नाम संभारै जो हम बिमल हृदय चित अंतर दोष कवत पर धरिहौ कह 'रैदास' प्रभु तुम दयाल हो अबंध मुक्ति का करिहौ
गाइ गाइ अब कहि गाऊँ गावनहार को निकट बताऊँ गाइ गाइ अब कहि गाऊँ गावनहार को निकट बिताऊँ जब लग है या तनकी आसा तब लग करै पुकारा जब मन मिल्यौ आस नहिं तन की तबको गावनहारा जब लग नदी न समुंद समावै तब लग बढ़ै हंकारा जब मन मिल्यो रामसागर सों तब ये मिटी पुकारा जब लग भगति मुक्ति की आसा परम तत्व मुनि गावै जहं जहं आस धरत है ये मन तहं तहं कछु न पावै छाड़ै आस निरास परम पद तब सुख सति कर होई कह 'रैदास' जासों और करत है परम तत्व अब सोई
बिनु देश उपजै नहीं आसा जो दीसै सो होइ बिनासा बरन सहित जो जापै नामु सो जोगी केवल निहकामु परचै रामु रवै जउ कोई पारसु परसै दुबिधा न होई सो मुनि मनकी दुबिधा पाइ बिनु दुआरे त्रैलोक समाइ मन का सुभाउ सभु कोइ करै करता होइ सु अनभै रहै फल कारन फूली बनराइ फल लागा तब फूलु बिल्हाइ गिआने कारन करम अभिआस गिआनु भइआ तब करमह नासु घ्रित कारन दधि मथै सइआन जीवत मुक्त सदा निरबान कहि 'रविदास' परम वैराग रिदै रामु कीन जपिसि अभाग
सब कछु करत कहौ कछु कैसे गुन विधि बहुत रहत ससि जैसे सब कछु करत कहौ कछु कैसे गुन विधि बहुत रहत ससि जैसे दर्पन गगन अनिल अलेप जल गंध जलधि प्रतिबिम्ब देखि तस सब आरंभ अकाम अनेहा विधि निषेध कीयो अनेकेहा ये पद कहत सुनत जेहि आवै कह 'रैदास' सुकृत को पावै
पढ़ीऐ गुनीऐ नामु सभु सुनीऐ अनभउ भाउ न दरसै लोहा कंचनु हिरन होइ कैसे जउ पारसहि न परसै देव संसै गाँठि न छूटै काम क्रोध माइआ पद मतसर इह पंचहु मिलि लूटै हम बड़ कवि कुलीन हमे पंडित हम जोगी संनिआसी गिआनी गुनी सूर हम दाते इह बुधि कबहि न नासी कहु रविदास सभै नहीं समझसि भूलि परे जैसे बउरे मोहि अधारु नामु नाराइण जीवन प्रान धन मोरे
दूधु बछरै थनहु बिटारिउ फूलु भँवरि जलु मीनि बिगारिउ माई गोविंद पूजा कहालै चरावउ अवरु न फूलु अनूपुन न पावउ मैलागर व रहे है भुइअंगा बिषु अंम्रितु बसहिं इक संगा धूप दीप नई वेदहि बासा कैसे पूज करहि तेरी दासा तनु मनु अरपउ पूज चरावउ गुर परसादि निरंजनु पावउ पूजा अरचा आहि न तोरी कहि 'रविदास' कवन गति मोरी
संतो अनिल भगति ये नाहीं जब लग सिरजत मन पाँचों गुन ब्यापत है या माही जब लग सिरजत मन पाँचों गुन ब्यापत है या माही सोई आन अंतर करि हरि सों अपमारग को आनै काम क्रोध मद लोभ मोह की पल पल पूजा ठानै सत्य सनेह इष्ट अंग लावै अस्थल अस्थल खेलै जो कछु मिलै आन आखत सों सुत दारा सिर मेलै हरिजन हरिहि और न जानै तजै आन तन त्यागी कह 'रैदास' सोइ जन निर्मल निसदिन जो अनुरागी
तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा नीच रूप ते ऊँच भए हैं गंध सुगंध निवासा माधउ सत संगति सरनि तुम्हारी हम अउगन तुम उपकारी तुम मषतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा सत संगति मिलि रहीऐ माधउ जैसे मधुप मषीरा जाती ओछा पाती ओछा ओंछा जनमु हमारा राजा राम की सेवन कीन्ही कहि रविदास चमारा
जब हम होते तब तू नहीं अब तूँ ही मैं नाहीं अनल अगम जैसे लहरि मइओदंधि जल केवल जल मांही माधवे क्या कहीऐ भ्रमु ऐसा जैसा मानीऐ होइ न तैसा नरपति एकु सिंधासनि दुषु पाइआ सो गति भई हमारी राज भुइअंग प्रसंग जैसे हहि अब कछु मरमु जनाइआ अनिक कटक जैसे भूलि परे अब कहते कहनु न आइआ सरबे एकु अनेकै सुआमी सभ घट भोगवै सोई कहि 'रविदास' हाथपै नेरै सहजै होइ सु होई
तेरे देव कमलापति सरन आया मुझ जनम संदेह भ्रम छेदि माया अति अपार संसार भवसागर जामे जनम मरना संदेह भारी काम भ्रम क्रोध भ्रम लोभ भ्रम मोह भ्रम अनत भ्रम छेदि मम करसि यारी पंचसंगी मिलि पीड़ियो प्रान यों जाय न सक्यों वैराग भागा पुत्र वरग कुल बंधु ते भारजा भरवै दसो दिसा सिर काल लागा भगति चितऊं तो मोह दुख व्यापही मोह चितऊं तो मेरी भगति जाई उभय संदेह मोहि रैन दिन व्यापही दीन दाता करूँ कवन उपाई चपल चेतो नहीं बहुत दुख देखियो काम बस मोहिहो करम फंदा सक्ति सम्बंध कियो ज्ञान पद हरि लियो हृदय विस्वरूप तजि भयो अंधा परम प्रकास अविनासी अध मोचना निरखि निज रूप बिसराय पाया बदत 'रैदास' वैराग पद चिंतना जपौ जगदीस गोविंद राया
जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा माधव तुम न तोरहु तउ हम नहीं तरोहिं तुमसिउ तोरि कवनसिउ जोरहिं जउ तुम दीवरा तउ हम बाती जउ तुम तीरथ तउ हम जाती साची प्रीति हम तुमसिउ जोरी तुमसिउ जोरि अबरसंगि तोरी जहं जहं जाउ तहाँ तेरी सेवा तुमसों ठाकुरु अउरु न देवा तुमरे भजन कटहि जम फाँसा भगति देत गावै 'रविदास'
ऐसा ध्यान धरौं वरो बनवारी मन पवन दै सुखमन नारी ऐसा ध्यान धरौं वरो बनवारी मन पवन दै सुखमन नारी सो जप जपौं जो बहुरि न जपना सो तप तपौं जो बहुरि न तपना सो गुरु करौं जो बहुरि न करना ऐसो मरौं जो बहुरि न मरना उल्टी गंग जमुन में लावौं बिनही जल मंजन द्वै पावों लोचन भरि भरि बिंब निहारौं जोति बिचारि न और बिचारौं पिंड परे जिव जिस घर जाता सबद अतीत अनाहद राता जापर कृपा सोई भल जानै गूंगो साकर कहा बखानै सुन्न महल में मेरा बासा ताते जिव में रहौं उदासा कह 'रैदास' निरंजन ध्यावौं जिस चर जावँ सो बहुरि न आवौं
सहकी सार सुहागनि जानै तजि अभिमानु सुष रलीआ मानै तनु मनु देह न अंतरु राषै अवरा देषि न सुनै अभाषै सो कत जानै पीर पराई जाकै अंतरि दरदु न आई दुषी दुहागनि दुइ पष हीनी जिनि नाह निरंतरि भगति न कीनी पुरष लात का पंथु दुहेला संगि न साथी गवनु इकेला दुषीआ दरदवंदु दरि आइआ बहुतु पिआस जवाबु न पाइआ कहि 'रविदास' सरनि प्रभ तेरी जिउ जानहु तिउ करु गति मोरी
दूधु बछरै थनहु बिटारिउ फूलु भँवरि जलु मीनि बिगारिउ ज्यों तुम कारन केसवे अंतर लव लागी एक अनूपम अनुभवी किमि होइ बिरागी एक अभिमानी चातृगा बिचरत जगमांही यधपि जल पूरन मही कहूँ वा रूचि नाहीं जैसे कामी देखि कामनी हृदय सूल उपजाई कोटि वेद-विधि ऊचरै बाक़ी बिथा न जाई जो तेहि चाहै सो मिलै आरतगति होई कह 'रैदास' ये गोप नहिं जानै सब कोई